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Thursday, July 20, 2017

आरज़ू



कुछ अटपटे से ख्याल आ रहे हैं
तुम आ कर सम्हाल लो ना मुझे
दिन कुछ बिखरा बिखरा ही गुजरा मेरा आज
रातों में कुछ अपना ख्याल दो ना मुझे
ढलती शाम की धूप में कुछ बेरुखी महसूस हुई मुझे
ये कैसी अंजुमन है, बाहर निकाल दो ना मुझे
दो बरस से धड़कनो ने जान निकाल दी है मेरी
छुपा है क्या अंदर, खंगाल दो ना मुझे
नहीं है चाह की कोई टूट कर चाहे मुझे
रंगों में रंग गुलाल दो मुझे
किस आग ने मुझे तपा रखा है कश्मकश में ?
राख कर दूँ आज सब कुछ
एक ऐसी मशाल दो ना मुझे
तुम्हारे हाथों की छुअन याद आने लगी है
अपने घर के किसी कोने में डाल दो ना मुझे
है शक़ मुझे की तुम सिर्फ मेरे हो
अब इस झूठ के जाल से निकाल दो ना मुझे
देखो दिलों का रूठना तो चलता ही रहेगा
किसी रोज़ किस्मत का टक्साल दो ना मुझे

टक्साल - वह स्थान जहाँ सिक्के ढलते हों;

- कमल पनेरू